(क) कबीरदास
(कबीरवाणी-पद आरंभिक १०, साखी आरंभिक २५)
1. कबीर की ‘कबीरवाणी’ के संपादक कौन हैं, जैसा कि पाठ्यक्रम में निर्दिष्ट है?
सही उत्तर: (ग) पारसनाथ तिवारी
व्याख्या: पाठ्यक्रम में उल्लिखित ‘कबीरवाणी’ का संपादन डॉ. पारसनाथ तिवारी द्वारा किया गया है। यह संस्करण कबीर के पदों और साखियों का एक महत्वपूर्ण संग्रह है।
2. साखी ‘गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय’ में कबीर ने किसका महत्व सर्वोपरि माना है?
सही उत्तर: (ख) गुरु का
व्याख्या: इस प्रसिद्ध साखी में कबीर कहते हैं कि यदि गुरु और गोविन्द (ईश्वर) दोनों एक साथ खड़े हों, तो वे पहले गुरु के चरण स्पर्श करेंगे, क्योंकि गुरु ने ही गोविन्द तक पहुँचने का मार्ग दिखाया है। अतः गुरु का स्थान गोविन्द से भी ऊँचा है।
3. ‘जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहिं।’ – इस पंक्ति में ‘मैं’ का क्या अर्थ है?
सही उत्तर: (ख) अहंकार
व्याख्या: कबीर के अनुसार, ‘मैं’ अर्थात अहंकार और ‘हरि’ अर्थात ईश्वर एक साथ नहीं रह सकते। जब तक व्यक्ति में अहंकार रहता है, उसे ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती। अहंकार के मिटते ही ईश्वर का साक्षात्कार होता है।
4. कबीर के पद ‘दुलहिनी गावहु मंगलाचार’ में ‘दुलहिनी’ किसे कहा गया है?
सही उत्तर: (ख) जीवात्मा को
व्याख्या: इस पद में कबीर ने जीवात्मा (दुलहिनी) और परमात्मा (वर) के आध्यात्मिक विवाह का रूपक प्रस्तुत किया है। जीवात्मा रूपी दुल्हन परमात्मा रूपी दूल्हे से मिलने के लिए मंगलाचार गा रही है।
5. ‘पाणी हीतैं हिम भया, हिम ह्वै गया बिलाइ।’ – इस साखी के माध्यम से कबीर क्या दर्शाना चाहते हैं?
सही उत्तर: (ग) आत्मा और परमात्मा की अभिन्नता
व्याख्या: इस साखी में कबीर कहते हैं कि जैसे पानी से बर्फ बनता है और बर्फ पिघलकर फिर पानी बन जाता है, उसी प्रकार परमात्मा से ही आत्मा का प्रादुर्भाव होता है और अंततः आत्मा उसी परमात्मा में विलीन हो जाती है। दोनों मूलतः एक ही हैं।
6. कबीर ने बाहरी आडंबरों का विरोध किस पद में प्रमुखता से किया है?
सही उत्तर: (ग) ‘संतो, देखत जग बौराना’
व्याख्या: ‘संतो, देखत जग बौराना’ पद में कबीर ने हिंदू और मुसलमान दोनों के धार्मिक पाखंडों, मूर्तिपूजा, तीर्थ, व्रत, टोपी, माला, छापा-तिलक आदि बाहरी आडंबरों पर तीखा प्रहार किया है और सत्य के आंतरिक अनुभव पर बल दिया है।
7. ‘कांकर पाथर जोरि कै, मसजिद लई बनाय। ता चढि मुल्ला बांग दे, क्या बहरा हुआ खुदाय॥’ – इस साखी में कबीर ने किस पर व्यंग्य किया है?
सही उत्तर: (ख) अजान की प्रथा पर
व्याख्या: इस साखी में कबीर मुस्लिम समाज में मस्जिद की मीनार पर चढ़कर जोर-जोर से अजान देने की प्रथा पर व्यंग्य करते हुए कहते हैं कि क्या तुम्हारा खुदा बहरा हो गया है जो उसे इतनी जोर से पुकारना पड़ता है। यह उनके धार्मिक पाखंड पर प्रहार का उदाहरण है।
8. कबीर के अनुसार, सच्चा ज्ञान किससे प्राप्त होता है?
सही उत्तर: (ग) सद्गुरु के मार्गदर्शन से
व्याख्या: कबीर ने अपनी साखियों में बार-बार गुरु के महत्व को रेखांकित किया है। उनके अनुसार, सच्चा ज्ञान केवल सद्गुरु ही दे सकता है, जो शिष्य के अज्ञान रूपी अंधकार को ज्ञान रूपी दीपक से दूर करता है।
9. ‘पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय।’ – इस पंक्ति में कबीर किस बात पर बल दे रहे हैं?
सही उत्तर: (घ) (क) और (ख) दोनों
व्याख्या: कबीर कहते हैं कि केवल पुस्तकें पढ़कर कोई ज्ञानी नहीं बन जाता। सच्चा ज्ञानी या पंडित वह है जिसने प्रेम के ढाई अक्षर को समझ लिया है, अर्थात जिसने ईश्वर-प्रेम का अनुभव कर लिया है। वे कोरे किताबी ज्ञान की अपेक्षा आत्मानुभूति और प्रेम को अधिक महत्व देते हैं।
10. ‘हम न मरब मरिहै संसारा’ पद में कबीर की किस भावना की अभिव्यक्ति हुई है?
सही उत्तर: (ख) अमरता के बोध की
व्याख्या: इस पद में कबीर कहते हैं कि उन्होंने अपने मन को राम में रमाकर अमरता प्राप्त कर ली है। अब वे नहीं मरेंगे, बल्कि यह नश्वर संसार मरेगा। यह उनकी आत्मा की अमरता और परमात्मा से एकाकार होने के दृढ़ विश्वास को दर्शाता है।
11. ‘माया मुई न मन मुआ, मरि मरि गया सरीर’ – इस साखी का भावार्थ क्या है?
सही उत्तर: (घ) उपरोक्त सभी
व्याख्या: कबीर कहते हैं कि शरीर बार-बार मरता और जन्म लेता है, लेकिन मनुष्य के मन की माया और तृष्णा कभी समाप्त नहीं होती। यह साखी संसार के चक्र और मानवीय इच्छाओं की अनंतता पर एक गहरा कटाक्ष है।
12. कबीर की भाषा को ‘सधुक्कड़ी’ नाम किसने दिया?
सही उत्तर: (ग) रामचंद्र शुक्ल
व्याख्या: आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने कबीर की भाषा को ‘सधुक्कड़ी’ कहा है क्योंकि इसमें राजस्थानी, पंजाबी, खड़ी बोली, अवधी, ब्रज आदि कई भाषाओं के शब्दों का मिश्रण है, जो उनके घुमक्कड़ स्वभाव के कारण हुआ।
13. ‘यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान’ – इस साखी में ‘विष की बेलरी’ किसे कहा गया है?
सही उत्तर: (ख) मानव शरीर को
व्याख्या: कबीर इस शरीर को विष की बेल के समान मानते हैं जो मोह-माया और विकारों से भरा है। वहीं, गुरु को अमृत की खान बताते हैं, जिनके ज्ञान से इस विष का प्रभाव नष्ट हो सकता है।
14. कबीर के राम, अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र राम से किस प्रकार भिन्न हैं?
सही उत्तर: (क) वे निर्गुण, निराकार और घट-घट वासी हैं
व्याख्या: कबीर के राम निर्गुण, निराकार ब्रह्म के प्रतीक हैं। वे जन्म-मरण से परे, सर्वव्यापी और प्रत्येक प्राणी के हृदय में वास करने वाले हैं। वे तुलसीदास के सगुण, साकार, अवतारी राम से पूरी तरह भिन्न हैं।
15. ‘निंदक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाय’ – कबीर निंदक को पास रखने की सलाह क्यों देते हैं?
सही उत्तर: (ख) क्योंकि वह बिना साबुन-पानी के स्वभाव को निर्मल करता है
व्याख्या: कबीर का मानना है कि निंदक (आलोचक) हमारी कमियों को उजागर करता है, जिससे हमें अपने स्वभाव को सुधारने और निर्मल बनाने का अवसर मिलता है। इसलिए उसे अपने पास ही रखना चाहिए।
16. कबीर की उलटबाँसियों का मुख्य उद्देश्य क्या होता है?
सही उत्तर: (ग) आध्यात्मिक अनुभव की गूढ़ता को व्यक्त करना
व्याख्या: उलटबाँसियाँ ऐसी उक्तियाँ होती हैं जिनका अर्थ सामान्य प्रतीत होने वाले अर्थ के विपरीत होता है। कबीर इनका प्रयोग अपनी रहस्यवादी और आध्यात्मिक अनुभूतियों को व्यक्त करने के लिए करते थे, जो सामान्य भाषा में व्यक्त नहीं की जा सकतीं।
17. ‘हमन है इश्क मस्ताना, हमन को होशियारी क्या’ – इस पद में कबीर की किस अवस्था का वर्णन है?
सही उत्तर: (ख) ईश्वरीय प्रेम में मग्न होने की अवस्था
व्याख्या: इस पद में ‘इश्क मस्ताना’ का अर्थ है ईश्वरीय प्रेम में डूबा हुआ। कबीर कहते हैं कि जो इस प्रेम में मस्त हो गया है, उसे सांसारिक होशियारी या लोक-लाज की कोई परवाह नहीं रहती।
18. ‘जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान’ – इस पंक्ति में कबीर का कौन-सा सामाजिक दृष्टिकोण प्रकट होता है?
सही उत्तर: (ग) जाति-प्रथा का खंडन और ज्ञान को महत्व देना
व्याख्या: यह पंक्ति कबीर के प्रगतिशील सामाजिक चिंतन का उत्कृष्ट उदाहरण है। वे कहते हैं कि किसी व्यक्ति की पहचान उसकी जाति से नहीं, बल्कि उसके ज्ञान और गुणों से होनी चाहिए। यह समाज में व्याप्त जातिगत भेदभाव पर एक करारा प्रहार है।
19. ‘पाहन पूजे हरि मिलैं, तो मैं पूजूं पहार’ – इस पंक्ति में कौन सा अलंकार है?
सही उत्तर: (ग) वक्रोक्ति
व्याख्या: वक्रोक्ति अलंकार में कहने वाला किसी और अभिप्राय से कहता है और सुनने वाला उसका कोई और (आमतौर पर व्यंग्यात्मक) अर्थ निकालता है। यहाँ कबीर मूर्तिपूजा पर व्यंग्य कर रहे हैं कि यदि पत्थर पूजने से हरि मिलते तो वे छोटा-मोटा पत्थर क्यों, पूरा पहाड़ ही पूज लेते। यह कहने का ढंग व्यंग्यात्मक और टेढ़ा है।
20. ‘मन के हारे हार है, मन के जीते जीत’ – यह साखी किस मनोवैज्ञानिक सत्य को उजागर करती है?
सही उत्तर: (ख) इच्छाशक्ति और आत्मविश्वास का महत्व
व्याख्या: इस साखी में कबीर कहते हैं कि हार और जीत बाहरी परिस्थितियों पर नहीं, बल्कि व्यक्ति की मानसिक स्थिति पर निर्भर करती है। यदि मन हार मान ले तो हार निश्चित है, और यदि मन में जीतने का दृढ़ संकल्प हो तो जीत निश्चित है। यह इच्छाशक्ति के महत्व को दर्शाता है।
(ख) सूरदास
(सूर सुषमा: पद संख्या 1, 5, 12)
21. ‘सूर सुषमा’ के संपादक कौन हैं, जैसा कि पाठ्यक्रम में निर्दिष्ट है?
सही उत्तर: (ख) नंददुलारे वाजपेयी
व्याख्या: पाठ्यक्रम में उल्लिखित सूरदास के पदों का संग्रह ‘सूर सुषमा’ आचार्य नंददुलारे वाजपेयी द्वारा संपादित है।
22. सूरदास के पद (सं. 1) ‘अविगत-गति कछु कहत न आवै’ में ‘अविगत’ का क्या अर्थ है?
सही उत्तर: (ख) निर्गुण ब्रह्म
व्याख्या: ‘अविगत’ का अर्थ है वह जो जाना न जा सके, जिसका कोई रूप, रंग, आकार न हो। इस पद में सूरदास निर्गुण ब्रह्म की उपासना की कठिनाई बताते हुए कहते हैं कि उसकी स्थिति का वर्णन नहीं किया जा सकता, जैसे गूँगा व्यक्ति मीठे फल का स्वाद बता नहीं सकता, केवल अनुभव कर सकता है।
23. पद संख्या 1 के अनुसार, सूरदास ने निर्गुण की अपेक्षा सगुण भक्ति को क्यों श्रेष्ठ माना है?
सही उत्तर: (ख) क्योंकि सगुण भक्ति सुलभ, आनंददायक और मन को आधार देने वाली है।
व्याख्या: सूरदास कहते हैं कि निर्गुण ब्रह्म मन और वाणी से परे है, निराधार है। उसकी उपासना कठिन है। इसके विपरीत, सगुण ब्रह्म (कृष्ण) की लीलाओं का गान करना, उनके रूप-सौंदर्य का ध्यान करना सरल, सुलभ और परमानंद देने वाला है। इसलिए वे सगुण पद गाना श्रेयस्कर समझते हैं।
24. ‘सूर सुषमा’ के पद संख्या 5 (‘मैया, कबहिं बढ़ैगी चोटी?’) में कृष्ण यशोदा से क्या शिकायत कर रहे हैं?
सही उत्तर: (ख) अपनी चोटी के न बढ़ने की
व्याख्या: इस पद में बालकृष्ण अपनी माँ यशोदा से बालसुलभ शिकायत करते हैं कि वे उन्हें कब से दूध पिला रही हैं, यह कहकर कि इससे उनकी चोटी बलराम भैया की तरह लंबी और मोटी हो जाएगी, पर उनकी चोटी अभी भी छोटी ही है।
25. पद ‘मैया, कबहिं बढ़ैगी चोटी?’ में कौन सा रस प्रमुख है?
सही उत्तर: (घ) वात्सल्य रस
व्याख्या: इस पद में माता यशोदा और पुत्र कृष्ण के बीच का प्रेमपूर्ण संवाद, कृष्ण की बालसुलभ चेष्टाएँ और यशोदा का उन पर मोहित होना, वात्सल्य रस का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करता है। सूरदास वात्सल्य रस के सम्राट माने जाते हैं।
26. कृष्ण के अनुसार, दूध पीने से उनकी चोटी कैसी हो जाएगी?
सही उत्तर: (घ) (क) और (ख) दोनों
व्याख्या: पद में कृष्ण कहते हैं – “काचो दूध पियावत पचि-पचि, देत न माखन-रोटी। सूर स्याम चिरजीवौ दोउ भैया, हरि-हलधर की जोटी॥” वे कहते हैं कि माँ यशोदा ने कहा था कि दूध पीने से उनकी चोटी बलराम की तरह लंबी-मोटी और नागिन सी लहराने वाली हो जाएगी।
27. ‘सूर सुषमा’ के पद संख्या 12 (‘ऊधो, मन न भए दस बीस’) में गोपियाँ उद्धव से क्या कह रही हैं?
सही उत्तर: (ख) वे निर्गुण ब्रह्म की उपासना करने में असमर्थ हैं।
व्याख्या: यह पद भ्रमरगीत प्रसंग का है। जब उद्धव गोपियों को योग और निर्गुण ब्रह्म का संदेश देते हैं, तो गोपियाँ अपनी विवशता प्रकट करती हुई कहती हैं कि उनके पास दस-बीस मन नहीं हैं। एक ही मन था, जो कृष्ण के साथ चला गया। अब वे किस मन से निर्गुण ब्रह्म की आराधना करें?
28. ‘इंद्री सिथिल भई केसव बिनु, ज्यों देही बिनु सीस’ – इस पंक्ति में गोपियों की दशा का वर्णन किस अलंकार के माध्यम से किया गया है?
सही उत्तर: (ग) उपमा
व्याख्या: इस पंक्ति में ‘ज्यों’ वाचक शब्द का प्रयोग हुआ है। गोपियों की कृष्ण के बिना शिथिल इंद्रियों की तुलना बिना सिर के धड़ से की गई है। यहाँ उपमेय (इंद्रियाँ), उपमान (देही बिनु सीस), साधारण धर्म (शिथिल होना) और वाचक शब्द (ज्यों) सभी मौजूद हैं, अतः यह उपमा अलंकार है।
29. पद ‘ऊधो, मन न भए दस बीस’ में किस प्रकार का श्रृंगार है?
सही उत्तर: (ख) वियोग (विप्रलंभ) श्रृंगार
व्याख्या: इस पद में कृष्ण के मथुरा चले जाने के बाद गोपियाँ उनके विरह में व्याकुल हैं। उनकी विरह-वेदना, कृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम और मिलन की आशा, ये सभी भाव वियोग श्रृंगार के अंतर्गत आते हैं।
30. सूरदास के काव्य की मुख्य भाषा कौन सी है?
सही उत्तर: (ग) ब्रजभाषा
व्याख्या: सूरदास ने अपने काव्य की रचना साहित्यिक ब्रजभाषा में की। उन्होंने ब्रजभाषा को उसके माधुर्य और लालित्य के शिखर पर पहुँचा दिया। उनके पद ब्रजभाषा की कोमलता और संगीतात्मकता के सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हैं।
(ग) तुलसीदास – विनय पत्रिका
(पद संख्या 90, 101, 102, 105, 111, 112, 114, 162, 167, 172)
31. तुलसीदास की ‘विनय पत्रिका’ की भाषा क्या है?
सही उत्तर: (ख) ब्रजभाषा
व्याख्या: यद्यपि तुलसीदास ने ‘रामचरितमानस’ की रचना अवधी में की, तथापि ‘विनय पत्रिका’ और ‘कवितावली’ जैसे ग्रंथों की रचना उन्होंने ब्रजभाषा में की है। विनय पत्रिका की ब्रजभाषा अत्यंत परिमार्जित और प्रौढ़ है।
32. ‘विनय पत्रिका’ लिखने का मुख्य उद्देश्य क्या था?
सही उत्तर: (ख) कलियुग के कष्टों से मुक्ति के लिए राम के दरबार में अर्जी भेजना
व्याख्या: ‘विनय पत्रिका’ का शाब्दिक अर्थ है ‘प्रार्थना-पत्र’। ऐसी मान्यता है कि तुलसीदास ने कलियुग के प्रभाव से त्रस्त होकर, उससे मुक्ति पाने के लिए भगवान राम के दरबार में यह अर्जी (विनय पत्रिका) प्रस्तुत की थी, जिसे माता सीता के माध्यम से भेजा गया।
33. पद संख्या 90 (‘कबहुँक अंब, अवसर पाइ’) में तुलसीदास किससे अपनी सिफारिश करने के लिए कह रहे हैं?
सही उत्तर: (ग) सीता माता से
व्याख्या: इस पद में तुलसीदास अत्यंत विनम्रतापूर्वक माता सीता से अनुरोध करते हैं कि हे माँ! कभी उचित अवसर पाकर मेरी भी करुण कथा श्री राम को सुना देना। वे सीता को अपनी मध्यस्थ बनाना चाहते हैं।
34. पद संख्या 101 (‘ऐसी मूढ़ता या मन की’) में तुलसीदास ने मन की किस मूढ़ता का वर्णन किया है?
सही उत्तर: (घ) उपरोक्त सभी
व्याख्या: इस पद में तुलसीदास अपने मन की मूर्खता पर पश्चाताप करते हैं। वे कहते हैं कि उनका मन श्रीराम रूपी अमृत के सागर को छोड़कर विषयों की मृगतृष्णा में भटक रहा है, ठीक वैसे ही जैसे कोई गंगा को छोड़कर ओस से प्यास बुझाना चाहे या कामधेनु को छोड़कर बकरी की सेवा करे।
35. ‘विनय पत्रिका’ में तुलसीदास की भक्ति किस भाव की है?
सही उत्तर: (ग) दास्य भाव की
व्याख्या: ‘विनय पत्रिका’ में तुलसीदास स्वयं को एक दीन-हीन दास और भगवान राम को अपना स्वामी मानते हैं। पूरी रचना में उनकी विनम्रता, आत्म-ग्लानि और स्वामी के प्रति अनन्य समर्पण का भाव प्रकट होता है, जो दास्य भाव की भक्ति का उत्कृष्ट उदाहरण है।
36. पद संख्या 102 (‘हे हरि! कस न हरहु भ्रम भारी?’) में तुलसीदास ईश्वर से क्या हरने की प्रार्थना करते हैं?
सही उत्तर: (ख) अपना भारी भ्रम (अज्ञान)
व्याख्या: इस पद में तुलसीदास भगवान से प्रार्थना करते हैं कि हे हरि! आप मेरे इस भारी भ्रम को क्यों नहीं हर लेते? यह भ्रम है ‘मैं’ और ‘मेरे’ का, अर्थात देह और सांसारिक वस्तुओं में आसक्ति का। वे इस अज्ञान से मुक्ति चाहते हैं।
37. पद संख्या 105 (‘अब लौं नसानी, अब न नसैहौं’) में तुलसीदास क्या संकल्प लेते हैं?
सही उत्तर: (ख) अब तक जीवन व्यर्थ गँवाया, पर अब राम-भक्ति में लगकर उसे व्यर्थ नहीं जाने देंगे
व्याख्या: इस पद में तुलसीदास दृढ़ संकल्प व्यक्त करते हैं। वे कहते हैं कि ‘अब तक तो मैंने अपना जीवन (इंद्रियों के वश में होकर) नष्ट कर दिया, पर अब इसे नष्ट नहीं होने दूँगा’। वे राम की कृपा से प्राप्त इस अवसर का सदुपयोग कर माया के जाल को काटने का निश्चय करते हैं।
38. पद संख्या 111 (‘जाउँ कहाँ तजि चरन तुम्हारे?’) में तुलसीदास की कौन सी भावना व्यक्त हुई है?
सही उत्तर: (क) अनन्य आश्रय की भावना
व्याख्या: इस पद में तुलसीदास कहते हैं कि हे प्रभु! आपके चरणों को छोड़कर मैं और कहाँ जाऊँ? संसार में आपके समान दीन-दुखियों पर दया करने वाला और कोई नहीं है। यह उनकी अनन्यता और राम के प्रति पूर्ण समर्पण को दर्शाता है कि उनके लिए राम ही एकमात्र आश्रय हैं।
39. पद संख्या 112 (‘श्रीरामचंद्र कृपालु भजु मन’) किस प्रकार का पद है?
सही उत्तर: (घ) (क) और (ग) दोनों
व्याख्या: यह पद एक प्रसिद्ध आरती भी है। इसमें तुलसीदास एक ओर तो अपने मन को कृपालु श्रीराम का भजन करने का उपदेश देते हैं, और दूसरी ओर श्रीराम के रूप-सौंदर्य, गुणों और सामर्थ्य की स्तुति करते हैं। अतः यह स्तुतिपरक और उपदेशात्मक दोनों है।
40. पद संख्या 114 (‘मन, पछितैहै अवसर बीते’) में तुलसीदास मन को क्यों सचेत कर रहे हैं?
सही उत्तर: (घ) उपरोक्त सभी
व्याख्या: तुलसीदास अपने मन को समझाते हैं कि यह मानव जीवन रूपी अवसर बीत गया तो फिर पछताना पड़ेगा। यह दुर्लभ मानव देह देवताओं को भी दुर्लभ है। इसे पाकर यदि हरि-भजन नहीं किया तो भवसागर से पार पाना असंभव है।
41. पद संख्या 162 (‘माधो, मोह-फाँस क्यों टूटै?’) में ‘मोह-फाँस’ से क्या तात्पर्य है?
सही उत्तर: (ख) अज्ञान और सांसारिक आसक्ति का जाल
व्याख्या: ‘मोह-फाँस’ का अर्थ है अज्ञान के कारण उत्पन्न सांसारिक वस्तुओं, संबंधों और ‘मैं-मेरे’ के भाव में गहरी आसक्ति। तुलसीदास कहते हैं कि बाहरी उपाय करने से यह फाँस नहीं टूट सकती, यह तो केवल हरि-कृपा से ही टूट सकती है।
42. पद संख्या 167 (‘जाके प्रिय न राम-बैदेही’) में तुलसीदास कैसे व्यक्ति को त्यागने की सलाह देते हैं?
सही उत्तर: (ग) जिसे राम और सीता प्रिय न हों, चाहे वह कितना भी प्रिय क्यों न हो
व्याख्या: इस प्रसिद्ध पद में तुलसीदास अपनी अनन्य भक्ति का परिचय देते हुए कहते हैं कि जिसे राम और सीता प्रिय नहीं हैं, उस व्यक्ति को परम स्नेही होने पर भी करोड़ों शत्रुओं के समान समझकर त्याग देना चाहिए। उन्होंने प्रह्लाद, विभीषण, भरत आदि के उदाहरण भी दिए हैं।
43. पद संख्या 172 (‘देव, दूसरो कौन दीनको दयालु?’) में तुलसीदास राम के किस गुण का बखान कर रहे हैं?
सही उत्तर: (ग) दीनों पर दया करने के उनके स्वभाव का
व्याख्या: इस पद में तुलसीदास कहते हैं कि हे देव! आपके सिवा दीनों पर दया करने वाला दूसरा कौन है? वे विभिन्न उदाहरणों (गीध, सबरी, विभीषण) से सिद्ध करते हैं कि राम ‘पतित-पावन’ और ‘दीनबंधु’ हैं और अपने शरणागतों पर अकारण कृपा करते हैं।
44. तुलसीदास ने विनय पत्रिका में किस पौराणिक अवधारणा का उल्लेख अपनी मुक्ति के लिए किया है?
सही उत्तर: (क) कलियुग का प्रभाव
व्याख्या: विनय पत्रिका की रचना के मूल में कलियुग के बढ़ते प्रभाव से उत्पन्न त्रास है। तुलसीदास मानते हैं कि कलियुग में सभी धर्म-कर्म, साधन नष्ट हो गए हैं और केवल राम-नाम और उनकी कृपा ही जीव के उद्धार का एकमात्र साधन है।
45. ‘विनय पत्रिका’ किस काव्य रूप में लिखी गई है?
सही उत्तर: (ग) मुक्तक काव्य (गीति काव्य)
व्याख्या: ‘विनय पत्रिका’ एक मुक्तक काव्य है, जिसके सभी पद स्वतंत्र और अपने आप में पूर्ण हैं। ये पद विभिन्न राग-रागनियों में गाए जा सकते हैं, इसलिए इसे गीति-काव्य भी कहा जाता है। इसमें कथा का कोई तारतम्य नहीं है, बल्कि भक्ति और विनय के भावों की अभिव्यक्ति है।
(घ) बिहारी
(दोहा संख्या: 1, 9, 11, 13, 15, 16, 22, 24, 29, 44, 58, 72, 73, 77, 80, 93, 97, 103, 112)
46. बिहारी किस काव्य-धारा के कवि हैं?
सही उत्तर: (ग) रीतिकाल – रीतिसिद्ध धारा
व्याख्या: बिहारी रीतिकाल के सबसे प्रसिद्ध कवि हैं। उन्होंने लक्षण-ग्रंथों की रचना तो नहीं की, लेकिन काव्य-रचना करते समय उनका ध्यान लक्षणों (काव्यशास्त्रीय सिद्धांतों) पर अवश्य रहता था। इसलिए उन्हें रीतिसिद्ध धारा का कवि माना जाता है।
47. बिहारी की एकमात्र रचना का क्या नाम है?
सही उत्तर: (ख) बिहारी सतसई
व्याख्या: बिहारी ने केवल एक ही ग्रंथ की रचना की, जिसका नाम ‘बिहारी सतसई’ है। ‘सतसई’ का अर्थ है सात सौ (या लगभग) दोहों का संग्रह। अपनी इसी एक कृति से वे हिंदी साहित्य में अमर हो गए।
48. बिहारी के लिए ‘गागर में सागर भरने’ की उक्ति का क्या अर्थ है?
सही उत्तर: (ख) वे कम शब्दों (दोहों) में बहुत गहरे और व्यापक अर्थ भर देते थे
व्याख्या: यह उक्ति बिहारी की काव्य-कला की सबसे बड़ी विशेषता है। वे अपने दोहे जैसे छोटे से छंद में कल्पना की समाहार शक्ति और भाषा की समास शक्ति के बल पर बहुत बड़े और गूढ़ भावों को व्यक्त कर देते थे।
49. दोहा सं. 1 (‘मेरी भव बाधा हरो, राधा नागरि सोइ’) में कवि किससे अपनी सांसारिक बाधाओं को हरने की प्रार्थना कर रहे हैं?
सही उत्तर: (ख) चतुर राधिका से
व्याख्या: यह बिहारी सतसई का मंगलाचरण है। इसमें कवि चतुर (नागरि) राधिका से प्रार्थना करते हैं कि वे उनकी सांसारिक बाधाओं को दूर करें। ‘जा तन की झाँईं परै, स्याम हरित दुति होइ’ के श्लेष के कारण यह दोहा अत्यंत प्रसिद्ध है।
50. ‘जा तन की झाँईं परै, स्याम हरित दुति होइ’ में ‘हरित दुति होइ’ के क्या-क्या अर्थ संभव हैं?
सही उत्तर: (घ) उपरोक्त सभी
व्याख्या: इस पंक्ति में श्लेष अलंकार है। ‘झाँई’ का अर्थ है परछाई/झलक और ‘स्याम’ का अर्थ है कृष्ण/काला रंग/पाप। ‘हरित दुति’ का अर्थ है हरे रंग की चमक/प्रसन्न होना/कांतिहीन होना। अतः तीनों अर्थ संभव हैं: (1) राधा की सुनहरी देह की परछाई पड़ने से कृष्ण का साँवला शरीर हरा दिखने लगता है। (2) राधा को देखकर कृष्ण का मन हरा-भरा यानी प्रसन्न हो जाता है। (3) राधा की झलक मात्र से भक्त के पाप नष्ट हो जाते हैं।
51. दोहा सं. 9 (‘अजो तरयोना ही रह्यो, श्रुति सेवत इक रंग’) में ‘तरयोना’ शब्द के दो अर्थ क्या हैं?
सही उत्तर: (क) कान का आभूषण और तरा नहीं
व्याख्या: इस दोहे में श्लेष अलंकार है। कवि कहते हैं कि ‘तरयोना’ (कान का आभूषण) हमेशा ‘श्रुति’ (कान/वेद) की सेवा करता रहा, फिर भी ‘अजो तरयोना’ (अभी तक तरा नहीं, यानी उसका उद्धार नहीं हुआ)। जबकि ‘बेसरि’ (नाक का आभूषण) ने ‘मुकुतन’ (मोती/मुक्त पुरुषों) का साथ पाकर उच्च स्थान प्राप्त कर लिया। इसका गूढ़ अर्थ है कि केवल वेद पढ़ने से उद्धार नहीं होता, बल्कि मुक्त पुरुषों का संग आवश्यक है।
52. दोहा सं. 11 (‘बतरस लालच लाल की, मुरली धरी लुकाइ’) में गोपियों ने कृष्ण की मुरली क्यों छिपा दी है?
सही उत्तर: (ग) वे कृष्ण से बातें करने के सुख के लालच में ऐसा करती हैं
व्याख्या: ‘बतरस’ का अर्थ है बातों का रस या आनंद। गोपियाँ कृष्ण से बात करने का आनंद लेना चाहती हैं, लेकिन कृष्ण हमेशा अपनी मुरली में खोए रहते हैं। इसलिए, उनसे बात करने का अवसर बनाने के लिए गोपियाँ उनकी मुरली छिपा देती हैं। यह संयोग श्रृंगार का सुंदर उदाहरण है।
53. दोहा सं. 13 (‘कहत, नटत, रीझत, खिझत, मिलत, खिलत, लजियात’) में नायक-नायिका कहाँ पर संकेतों में बात कर रहे हैं?
सही उत्तर: (ग) भरे भवन (लोगों से भरे घर) में
व्याख्या: दोहे की अंतिम पंक्ति है ‘भरे भौन में करत हैं, नैननु हीं सब बात’। इससे स्पष्ट है कि नायक-नायिका गुरुजनों और अन्य लोगों से भरे हुए घर में आँखों-ही-आँखों में इशारों से बात कर रहे हैं। यह बिहारी की चित्र-निर्माण क्षमता का अद्भुत उदाहरण है।
54. दोहा सं. 15 (‘बैठि रही अति सघन बन, पैठि सदन-तन माँह’) में ज्येष्ठ मास की दोपहर की भयंकरता के कारण छाया क्या कर रही है?
सही उत्तर: (ग) स्वयं छाया ढूँढ़ रही है
व्याख्या: इस दोहे में बिहारी ने गर्मी की प्रचंडता का अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन किया है। वे कहते हैं कि जेठ की दुपहरी इतनी भयानक है कि छाया भी उससे बचकर या तो घने जंगल में जा बैठी है या घर के अंदर छिप गई है। मानो छाया को भी छाया की आवश्यकता पड़ गई हो।
55. दोहा सं. 16 (‘कागद पर लिखत न बनत, कहत सँदेसु लजात’) में विरहिणी नायिका अपना संदेश नायक तक क्यों नहीं पहुँचा पा रही है?
सही उत्तर: (ग) विरह की अधिकता के कारण काँपते हाथों से लिखा नहीं जा रहा और संदेशवाहक से कहते हुए लज्जा आ रही है
व्याख्या: यह वियोग श्रृंगार का दोहा है। नायिका की विरह दशा इतनी गंभीर है कि उसके हाथ काँप रहे हैं, जिससे वह पत्र नहीं लिख पा रही। अपनी विरह की दशा को दूसरे (संदेशवाहक) से कहने में उसे संकोच और लज्जा का अनुभव हो रहा है। अंत में वह कहती है कि तुम्हारे हृदय में जो मेरा हृदय बसा है, वही मेरी दशा बता देगा।
56. दोहा सं. 22 (‘या अनुरागी चित्त की, गति समुझै नहिं कोइ’) में कवि ने प्रेमी मन की किस विचित्र गति का वर्णन किया है?
सही उत्तर: (क) यह जितना श्याम रंग (कृष्ण प्रेम) में डूबता है, उतना ही उज्ज्वल (पवित्र) होता जाता है
व्याख्या: इस दोहे में विरोधाभास अलंकार है। सामान्य नियम के अनुसार, किसी वस्तु को काले रंग में डुबाने से वह काली हो जाती है। लेकिन कवि कहते हैं कि यह प्रेमी मन जितना-जितना श्याम (श्रीकृष्ण) के रंग में डूबता है, उतना-उतना ही उज्ज्वल (निष्पाप, पवित्र) होता जाता है। यह भक्ति की महिमा का वर्णन है।
57. दोहा सं. 24 (‘कनक कनक तैं सौ गुनी, मादकता अधिकाय’) में ‘कनक’ शब्द के दो अर्थ क्या हैं?
सही उत्तर: (ग) सोना और धतूरा
व्याख्या: इस दोहे में यमक अलंकार है। ‘कनक’ शब्द दो बार आया है और दोनों बार उसका अर्थ भिन्न है। पहले ‘कनक’ का अर्थ है सोना (स्वर्ण) और दूसरे ‘कनक’ का अर्थ है धतूरा। बिहारी कहते हैं कि सोने में धतूरे से सौ गुना अधिक नशा होता है, क्योंकि धतूरे को तो खाने से नशा होता है, पर सोना तो पाने मात्र से ही मनुष्य को पागल (अहंकारी) बना देता है।
58. दोहा सं. 29 (‘तो पर वारौं उरबसी, सुनि राधिके सुजान’) में ‘उरबसी’ शब्द के तीन अर्थ कौन-कौन से हैं?
सही उत्तर: (क) उर्वशी (अप्सरा), हृदय में बसी, उर (वक्ष) का आभूषण
व्याख्या: इस दोहे में यमक और श्लेष का सुंदर प्रयोग है। कृष्ण राधिका से कहते हैं – हे सुजान राधिके! सुनो, मैं तुम पर ‘उरबसी’ (इंद्र की अप्सरा) को भी न्योछावर करता हूँ, क्योंकि तुम तो मेरे ‘उर बसी’ (हृदय में बस गई हो) हो। तुम मोहन के ‘उरबसी’ (हृदय पर धारण किए जाने वाले आभूषण) के समान हो।
59. दोहा सं. 44 (‘सीस-मुकुट, कटि-काछनी, कर-मुरली, उर-माल’) में बिहारी ने कृष्ण के किस रूप का वर्णन किया है?
सही उत्तर: (ग) नटवर (नर्तक) या ग्वाले के रूप का
व्याख्या: इस दोहे में कृष्ण की वेशभूषा का वर्णन है – सिर पर मोर-मुकुट, कमर में काछनी (धोती), हाथ में मुरली और हृदय पर वैजयंती माला। यह वेश-भूषा उनके पारंपरिक ग्वाल-बाल या नटवर नागर रूप की है। कवि कहते हैं कि यही रूप उनके मन में हमेशा बसा रहता है।
60. दोहा सं. 58 (‘अनियारे दीरघ दृगनु, किती न तरुनि समान’) में नायिका की आँखों की विशेषता क्या है जो उसे अन्य युवतियों से अलग करती है?
सही उत्तर: (ग) उसकी आँखों की तीखी चितवन मन को बेध देती है
व्याख्या: बिहारी कहते हैं कि नुकीली और बड़ी-बड़ी आँखें तो कितनी ही युवतियों की होती हैं, पर इस नायिका की आँखों की बात ही कुछ और है। इसकी चितवन (दृष्टि) जब तीखी होकर किसी के मन में चुभ जाती है, तो वह फिर कभी नहीं निकलती, अर्थात व्यक्ति पूरी तरह उसके वश में हो जाता है।
61. कबीरदास किस भक्ति शाखा के प्रवर्तक माने जाते हैं?
सही उत्तर: (ख) ज्ञानाश्रयी निर्गुण शाखा
व्याख्या: कबीरदास भक्तिकाल की निर्गुण काव्यधारा के अंतर्गत ज्ञानाश्रयी (या संत काव्य) शाखा के प्रवर्तक और सर्वश्रेष्ठ कवि हैं। उन्होंने ज्ञान, वैराग्य, गुरु-महिमा और निर्गुण ब्रह्म की उपासना पर बल दिया।
62. ‘बीजक’ किसका संग्रह है?
सही उत्तर: (ग) कबीरदास की वाणियों का
व्याख्या: ‘बीजक’ कबीरदास की वाणियों का सबसे प्रामाणिक संग्रह माना जाता है, जिसका संकलन उनके शिष्य धर्मदास ने किया था। इसके तीन भाग हैं – साखी, सबद (पद) और रमैनी।
63. सूरदास के काव्य का मुख्य विषय क्या है?
सही उत्तर: (ख) कृष्ण की बाल-लीला और प्रेम-लीला
व्याख्या: सूरदास मुख्यतः कृष्ण-भक्त कवि थे। उनके काव्य का केंद्र बिंदु भगवान कृष्ण की मनमोहक बाल-लीलाएँ, गोपियों के साथ उनकी प्रेम-लीला (श्रृंगार) और उद्धव-गोपी संवाद (भ्रमरगीत) है।
64. ‘अष्टछाप’ के कवियों में सर्वप्रमुख स्थान किसका है?
सही उत्तर: (ग) सूरदास
व्याख्या: ‘अष्टछाप’ की स्थापना महाप्रभु वल्लभाचार्य और उनके पुत्र विट्ठलनाथ ने की थी। इसमें आठ कृष्ण-भक्त कवि थे, जिनमें सूरदास को सर्वप्रमुख स्थान प्राप्त है। उन्हें ‘अष्टछाप का जहाज’ भी कहा जाता है।
65. तुलसीदास को ‘लोकनायक’ किसने कहा है?
सही उत्तर: (ग) आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी
व्याख्या: आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने तुलसीदास को भारत का ‘लोकनायक’ कहा था, क्योंकि उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से तत्कालीन समाज के विभिन्न मतों, संप्रदायों और वर्गों में समन्वय स्थापित करने का महान कार्य किया।
66. बिहारी किस राजा के दरबारी कवि थे?
सही उत्तर: (ख) जयपुर के राजा जयसिंह
व्याख्या: बिहारी जयपुर (आमेर) के मिर्जा राजा जयसिंह के दरबारी कवि थे। कहा जाता है कि वे राजा को प्रत्येक दोहे की रचना पर एक स्वर्ण मुद्रा (अशरफी) प्रदान करते थे।
67. कबीर के पद ‘झीनी झीनी बीनी चदरिया’ में ‘चदरिया’ किसका प्रतीक है?
सही उत्तर: (क) मानव शरीर का
व्याख्या: इस प्रसिद्ध पद में कबीर ने मानव शरीर को एक चादर (चदरिया) के रूपक में बाँधा है जिसे बनाने में पंचतत्व और तीन गुणों (सत, रज, तम) के धागे लगे हैं। वे कहते हैं कि इस चादर को ज्यों का त्यों (बिना मैला किए) ईश्वर को वापस सौंप देना चाहिए।
68. ‘भ्रमरगीत’ प्रसंग सूरदास के किस ग्रंथ का अंश है?
सही उत्तर: (क) सूरसागर
व्याख्या: ‘भ्रमरगीत’ प्रसंग ‘सूरसागर’ का एक अत्यंत मार्मिक और महत्वपूर्ण अंश है। इसमें उद्धव के माध्यम से निर्गुण पर सगुण भक्ति की विजय दिखाई गई है। पद ‘ऊधो, मन न भए दस बीस’ इसी प्रसंग का है।
69. तुलसीदास ने ‘विनय पत्रिका’ में किस देवता की स्तुति नहीं की है?
सही उत्तर: (घ) ब्रह्मा
व्याख्या: विनय पत्रिका में तुलसीदास ने राम-सीता के अतिरिक्त गणेश, सूर्य, शिव, गंगा, यमुना, हनुमान, भरत, लक्ष्मण, शत्रुघ्न आदि अनेक देवी-देवताओं की स्तुति की है, ताकि वे सब राम-भक्ति में सहायक बनें। इसमें ब्रह्मा की स्तुति प्रमुखता से नहीं मिलती।
70. दोहा सं. 72 (‘दृग उरझत, टूटत कुटुम…’) में प्रीति की कौन सी विचित्र रीति बताई गई है?
सही उत्तर: (क) आँखें कहीं और उलझती हैं और परिवार कहीं और टूटता है।
व्याख्या: इस दोहे में बिहारी प्रेम की असंगति और विचित्रता का वर्णन करते हैं। वे कहते हैं कि उलझते तो नायक-नायिका के नेत्र हैं, पर टूटते उनके परिवार हैं (‘टूटत कुटुम’), गाँठ दुष्टों के हृदय में पड़ती है (‘जुरत चतुर चित प्रीति, परति गाँठि दुरजन हियै’)। यह प्रेम की एक नई और अनोखी रीति है।
71. दोहा सं. 73 (‘पत्रा ही तिथि पाइयै, वा घर के चहुँ पास’) में नायिका के घर के आसपास की क्या स्थिति बताई गई है?
सही उत्तर: (ख) हमेशा पूर्णिमा जैसा प्रकाश रहता है।
व्याख्या: इस दोहे में नायिका के सौंदर्य का अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन है। कवि कहते हैं कि उस नायिका के मुख-चंद्र के प्रकाश के कारण उसके घर के चारों ओर हमेशा पूर्णिमा का ही उजाला रहता है, जिससे कृष्ण और शुक्ल पक्ष का भेद ही मिट गया है। तिथि का पता तो केवल पंचांग (पत्रा) देखकर ही लग पाता है।
72. दोहा सं. 77 (‘लिखन बैठि जाकी छबी, गहि गहि गरब गरूर’) में चित्रकार नायिका का चित्र क्यों नहीं बना पा रहे हैं?
सही उत्तर: (ग) क्योंकि नायिका का सौंदर्य क्षण-प्रतिक्षण बदलता और बढ़ता रहता है।
व्याख्या: यहाँ नायिका के सौंदर्य की अस्थिरता और वर्धनशीलता का वर्णन है। बड़े-बड़े अभिमानी चित्रकार उसका चित्र बनाने बैठते हैं, लेकिन जितनी देर में वे कुछ चित्रित करते हैं, उतनी देर में उसका सौंदर्य और अधिक बढ़ जाता है, जिससे उनका बनाया चित्र अधूरा और गलत हो जाता है।
73. दोहा सं. 80 (‘जपमाला, छापा, तिलक, सरै न एकौ कामु’) किस कवि की विचारधारा से मेल खाता है?
सही उत्तर: (ग) कबीरदास
व्याख्या: इस नीतिपरक दोहे में बिहारी कहते हैं कि जपमाला, छापा, तिलक आदि बाहरी आडंबरों से एक भी काम सिद्ध नहीं होता। मन तो कच्चा ही रहता है और व्यर्थ ही संसार में भटकता है। सच्चा ईश्वर तो सच्चे मन में ही बसता है (‘साँचै राँचै रामु’)। यह विचार कबीरदास के बाहरी आडंबरों के खंडन के विचार से पूरी तरह मेल खाता है।
74. दोहा सं. 93 (‘बड़े न हूजै गुनन बिनु, बिरद बड़ाई पाय’) में बिहारी क्या संदेश दे रहे हैं?
सही उत्तर: (घ) उपरोक्त सभी।
व्याख्या: यह एक नीतिपरक दोहा है। बिहारी कहते हैं कि बिना वास्तविक गुणों के, केवल झूठी प्रशंसा या बड़ा नाम पा लेने से कोई महान नहीं हो जाता। उदाहरण के लिए, धतूरे को भी ‘कनक’ (सोना) कहते हैं, पर उससे आभूषण नहीं गढ़े जा सकते। यह गुण की महत्ता को स्थापित करता है।
75. दोहा सं. 97 (‘चिरजीवौ जोरी जुरै, क्यों न सनेह गंभीर’) में राधा और कृष्ण की जोड़ी को लेकर कवि क्या कहते हैं?
सही उत्तर: (ख) यह जोड़ी अद्वितीय और श्रेष्ठ है, इनमें गहरा प्रेम क्यों न हो।
व्याख्या: कवि कहते हैं कि राधा और कृष्ण की यह जोड़ी चिरंजीवी हो, इनमें गहरा प्रेम भला क्यों न हो? क्योंकि दोनों ही एक-दूसरे से किसी भी बात में कम नहीं हैं। यदि वे (‘वृषभानुजा’ – बैल की बहन, गाय) हैं तो वे (‘हलधर के बीर’ – हलधर (बैल) के भाई, साँड़) हैं। यहाँ श्लेष से अद्भुत व्यंग्यात्मक प्रशंसा की गई है। ‘वृषभानुजा’ का दूसरा अर्थ है वृषभानु की पुत्री (राधा) और ‘हलधर के बीर’ का अर्थ है हलधर (बलराम) के भाई (कृष्ण)।
76. दोहा सं. 103 (‘कोऊ कोरिक संग्रहौ, कोऊ लाख हजार’) में कवि के लिए सच्चा धन क्या है?
सही उत्तर: (घ) यदुनाथ (श्रीकृष्ण) के नाम का धन
व्याख्या: इस भक्तिपरक दोहे में बिहारी कहते हैं कि कोई करोड़ों का संग्रह करे, कोई लाख-हजार का। मेरे लिए तो संपत्ति और आधार, सब कुछ यदुनाथ (श्रीकृष्ण) का नाम ही है। यह उनकी भक्ति-भावना और सांसारिक धन के प्रति अनासक्ति को दर्शाता है।
77. दोहा सं. 112 (‘नीकी लागि अनाकनी, फीकी परी गोहारि’) में राजा जयसिंह को किस बात के लिए सचेत किया गया है?
सही उत्तर: (ख) अपनी नव-विवाहिता रानी के प्रेम में डूबे रहने और राज-काज की उपेक्षा करने के लिए
व्याख्या: यह प्रसिद्ध दोहा बिहारी ने राजा जयसिंह को कर्तव्य-बोध कराने के लिए लिखा था। राजा अपनी छोटी रानी के प्रेम में इतने डूबे थे कि राज-दरबार में आना ही छोड़ दिया था। बिहारी ने अन्योक्ति के माध्यम से कहा – ‘नहिं पराग नहिं मधुर मधु… आगे कौन हवाल’। इसका अर्थ था कि अभी तो कली पूरी तरह खिली भी नहीं है, जब यह फूल बन जाएगी तब आपका क्या हाल होगा? यह सुनकर राजा सचेत हो गए।
78. कबीर के समाज-सुधार का मूल आधार क्या था?
सही उत्तर: (ग) मानवतावाद और एकेश्वरवाद
व्याख्या: कबीर के समाज सुधार के मूल में यह मान्यता थी कि सभी मनुष्य एक ही ईश्वर की संतान हैं, अतः सब समान हैं। उन्होंने जाति-पाँति, ऊँच-नीच, हिंदू-मुसलमान के भेद और धार्मिक आडंबरों का खंडन इसी मानवतावादी और एकेश्वरवादी दृष्टिकोण के आधार पर किया।
79. ‘सूरसागर’ का उपजीव्य ग्रंथ कौन-सा माना जाता है?
सही उत्तर: (ग) श्रीमद्भागवत महापुराण
व्याख्या: सूरदास ने अपने ‘सूरसागर’ की कथा का आधार मुख्य रूप से श्रीमद्भागवत महापुराण के दशम स्कंध को बनाया है। हालाँकि, उन्होंने अपनी मौलिक कल्पना और प्रतिभा से उसमें अनेक नवीन प्रसंगों और भावों का समावेश किया है।
80. ‘रामचरितमानस’ और ‘विनय पत्रिका’ के भावों में मुख्य अंतर क्या है?
सही उत्तर: (घ) उपरोक्त सभी अंतर सही हैं।
व्याख्या: ये सभी अंतर महत्वपूर्ण हैं। ‘रामचरितमानस’ एक प्रबंध काव्य है जिसमें रामकथा के माध्यम से लोक-मंगल और समन्वय की भावना है। वहीं ‘विनय पत्रिका’ एक गीति-काव्य है जिसमें तुलसीदास की व्यक्तिगत भक्ति, दीनता और मोक्ष की याचना का भाव प्रमुख है। भाषा का अंतर भी स्पष्ट है।
81. बिहारी के दोहों में किन तीन विषयों की त्रिवेणी मिलती है?
सही उत्तर: (ख) श्रृंगार, भक्ति और नीति
व्याख्या: बिहारी सतसई में मुख्य रूप से श्रृंगार रस के दोहे हैं, लेकिन इसमें भक्ति (राधा-कृष्ण की भक्ति) और नीति (लोक-व्यवहार और ज्ञान) से संबंधित दोहे भी बड़ी संख्या में मिलते हैं। इसीलिए इसे श्रृंगार, भक्ति और नीति की त्रिवेणी कहा जाता है।
82. कबीर की मृत्यु कहाँ हुई थी, इस विश्वास को तोड़ने के लिए कि काशी में मरने से मोक्ष मिलता है?
सही उत्तर: (ख) मगहर में
व्याख्या: उस समय यह अंधविश्वास प्रचलित था कि काशी में मरने वाले को स्वर्ग/मोक्ष मिलता है और मगहर में मरने वाले को नरक। इस अंधविश्वास पर प्रहार करने के लिए कबीर अपने अंतिम समय में जान-बूझकर मगहर चले गए और वहीं अपनी देह त्यागी।
83. सूरदास को ‘वात्सल्य रस का सम्राट’ क्यों कहा जाता है?
सही उत्तर: (ख) क्योंकि उन्होंने वात्सल्य रस का जितना सूक्ष्म, सजीव और मनोवैज्ञानिक चित्रण किया है, वैसा अन्यत्र दुर्लभ है।
व्याख्या: सूरदास ने कृष्ण की बाल-लीलाओं और यशोदा के मातृ-हृदय की भावनाओं का इतना अद्भुत, मार्मिक और विस्तृत वर्णन किया है कि आलोचकों ने उन्हें ‘वात्सल्य रस का सम्राट’ की उपाधि दी है। वे वात्सल्य का कोना-कोना झाँक आए हैं।
84. ‘तुलसी का सारा काव्य समन्वय की विराट चेष्टा है।’ – यह कथन किस आलोचक का है?
सही उत्तर: (ख) हजारी प्रसाद द्विवेदी
व्याख्या: यह प्रसिद्ध कथन आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का है। उनका मानना था कि तुलसीदास ने अपने समय के विभिन्न सामाजिक, धार्मिक और दार्शनिक मत-मतांतरों (जैसे – निर्गुण-सगुण, शैव-वैष्णव, ज्ञान-भक्ति) में सामंजस्य स्थापित करने का एक महान प्रयास किया।
85. बिहारी के दोहों पर किस टीका को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है?
सही उत्तर: (ख) बिहारी-रत्नाकर
व्याख्या: जगन्नाथदास ‘रत्नाकर’ द्वारा संपादित और टीकायित ‘बिहारी-रत्नाकर’ को बिहारी सतसई की सबसे प्रामाणिक और सर्वश्रेष्ठ टीका माना जाता है। रत्नाकर जी ने बड़ी मेहनत से पाठ-निर्धारण और अर्थ-विवेचन किया है।
86. ‘संतो भाई आई ग्यान की आँधी रे’ – इस पद में ‘ज्ञान की आँधी’ आने से क्या होता है?
सही उत्तर: (घ) उपरोक्त सभी।
व्याख्या: यह कबीर का एक प्रसिद्ध रूपक पद है। इसमें ज्ञान को आँधी के रूप में चित्रित किया गया है। जब ज्ञान की आँधी आती है, तो भ्रम, मोह, तृष्णा, दुविधा रूपी छप्पर के सारे हिस्से उड़ जाते हैं और हृदय में ईश्वर-प्रेम रूपी जल की वर्षा होती है।
87. सूरदास की भक्ति-पद्धति को क्या कहा जाता है?
सही उत्तर: (ग) पुष्टिमार्ग
व्याख्या: सूरदास वल्लभाचार्य के शिष्य थे और वल्लभाचार्य ने ‘पुष्टिमार्ग’ नामक भक्ति-संप्रदाय की स्थापना की थी। पुष्टिमार्ग का अर्थ है – भगवान के अनुग्रह या कृपा पर पूर्ण निर्भरता। सूरदास के काव्य में यही भाव सर्वत्र व्याप्त है।
88. तुलसीदास ने किस रचना में अपने जीवन के बारे में संकेत दिए हैं?
सही उत्तर: (घ) (ख) और (ग) दोनों में
व्याख्या: तुलसीदास ने ‘विनय पत्रिका’ में अपनी दीन-हीन दशा और भक्ति-यात्रा का वर्णन किया है। इसके अतिरिक्त ‘कवितावली’ के उत्तरकांड में उन्होंने अपने बचपन की गरीबी, दर-दर भटकने और हनुमानजी की कृपा से राम-भक्ति प्राप्त होने का स्पष्ट उल्लेख किया है।
89. ‘सतसइया के दोहरे, ज्यों नावक के तीर। देखन में छोटे लगैं, घाव करैं गंभीर॥’ – यह उक्ति किसके दोहों के लिए प्रसिद्ध है?
सही उत्तर: (ग) बिहारी
व्याख्या: यह प्रसिद्ध उक्ति बिहारी के दोहों की मार्मिकता और प्रभावशीलता के लिए कही गई है। इसका अर्थ है कि सतसई के दोहे किसी कुशल शिकारी के तीरों के समान हैं, जो देखने में तो बहुत छोटे लगते हैं, पर उनका प्रभाव (घाव) बहुत गहरा होता है।
90. कबीर की दृष्टि में ईश्वर कहाँ निवास करता है?
सही उत्तर: (ग) प्रत्येक प्राणी की साँसों में
व्याख्या: पद ‘मोको कहाँ ढूँढ़े बंदे, मैं तो तेरे पास में’ के अनुसार, कबीर का मानना है कि ईश्वर किसी बाहरी स्थान या कर्मकांड में नहीं, बल्कि हर प्राणी के भीतर, उसकी साँसों में ही वास करता है। उसे खोजने के लिए अंतर्मुखी होने की आवश्यकता है।
91. सूरदास के पदों की सबसे बड़ी विशेषता क्या है?
सही उत्तर: (ग) गेयता और संगीतात्मकता
व्याख्या: सूरदास के पद (जिन्हें ‘सूर’ भी कहते हैं) गेयता और संगीतात्मकता के गुण से ओत-प्रोत हैं। वे विभिन्न राग-रागनियों में रचे गए हैं और उन्हें आसानी से गाया जा सकता है। यह उनकी सबसे प्रमुख विशेषताओं में से एक है।
92. ‘दीनदयाल बिरिदु सँभारी। हरहु नाथ मम संकट भारी॥’ – यह पंक्ति विनय पत्रिका के किस भाव को दर्शाती है?
सही उत्तर: (ख) शरणागति और आर्त्त पुकार
व्याख्या: इस पंक्ति में तुलसीदास भगवान राम को उनके ‘दीनदयाल’ (दीनों पर दया करने वाले) होने के ‘बिरिदु’ (यश/प्रसिद्धि) का स्मरण दिलाते हुए अपने भारी संकट को हरने के लिए आर्त्त पुकार कर रहे हैं। यह उनकी पूर्ण शरणागति को व्यक्त करता है।
93. बिहारी के दोहों में किस अलंकार का प्रयोग बहुतायत से मिलता है?
सही उत्तर: (ग) श्लेष, यमक, विरोधाभास
व्याख्या: बिहारी की ‘गागर में सागर’ भरने की कला में चमत्कारपूर्ण अलंकारों का बड़ा योगदान है। उन्होंने श्लेष (एक शब्द के कई अर्थ), यमक (एक शब्द की आवृत्ति और भिन्न अर्थ) और विरोधाभास (जहाँ विरोध न होते हुए भी विरोध का आभास हो) जैसे अलंकारों का अत्यंत कुशलता से प्रयोग किया है।
94. ‘भाषा पर कबीर का जबरदस्त अधिकार था। वे वाणी के डिक्टेटर थे।’ – यह कथन किसका है?
सही उत्तर: (ग) हजारी प्रसाद द्विवेदी
व्याख्या: यह प्रसिद्ध कथन आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का है। उन्होंने कबीर की भाषा की शक्ति को रेखांकित करते हुए कहा कि कबीर ने भाषा से जो कुछ कहलवाना चाहा, कहलवा लिया। भाषा मानो उनके सामने लाचार सी नजर आती थी।
95. ‘सूर सुषमा’ में संकलित पदों के आधार पर, सूरदास की भक्ति में ज्ञान मार्ग की अपेक्षा किस मार्ग को प्रधानता दी गई है?
सही उत्तर: (ग) प्रेम और भक्ति (सगुण) मार्ग
व्याख्या: पद ‘अविगत-गति कछु कहत न आवै’ और ‘ऊधो, मन न भए दस बीस’ दोनों में सूरदास ने ज्ञान और योग मार्ग की कठिनाइयों को बताते हुए प्रेम और सगुण भक्ति के मार्ग को सरल, सुलभ और श्रेष्ठ बताया है।
96. तुलसीदास ने विनय पत्रिका में स्वयं को ‘सब अंगहीन, सब साधनहीन’ क्यों कहा है?
सही उत्तर: (ख) यह उनकी अत्यधिक विनम्रता और दास्य भाव का परिचायक है।
व्याख्या: तुलसीदास ईश्वर के समक्ष अपनी लघुता और तुच्छता को व्यक्त करने के लिए स्वयं को सभी गुणों और साधनों से हीन बताते हैं। यह उनकी विनम्रता की पराकाष्ठा है और दास्य भाव की भक्ति का एक अनिवार्य अंग है, जिसमें भक्त स्वयं को अयोग्य और प्रभु को सर्वगुणसंपन्न मानता है।
97. बिहारी के दोहों में प्रयुक्त ‘नायिका’ सामान्यतः किस प्रकार की है?
सही उत्तर: (ग) चतुर, वाक्-विदग्ध और मुग्धा/प्रौढ़ा
व्याख्या: बिहारी की नायिकाएँ अधिकतर दरबारी और नागरिक परिवेश की हैं। वे चतुर हैं, हाव-भाव और संकेतों में बात करने में निपुण हैं, और प्रेम-क्रीड़ाओं में सक्रिय भागीदार हैं। बिहारी ने नायिका-भेद के अनुसार मुग्धा, मध्या, प्रौढ़ा आदि विभिन्न अवस्थाओं का चित्रण किया है।
98. कबीर, सूर और तुलसी, इन तीनों भक्त कवियों में क्या समानता है?
सही उत्तर: (ग) तीनों ने गुरु के महत्व को स्वीकार किया।
व्याख्या: यद्यपि इन तीनों की भक्ति-पद्धति और आराध्य भिन्न-भिन्न थे, तथापि तीनों ने ही अपनी-अपनी तरह से गुरु की महिमा का गान किया है। कबीर ने गुरु को गोविंद से बड़ा बताया, सूरदास ने वल्लभाचार्य को अपना गुरु माना, और तुलसीदास ने भी गुरु की वंदना की है।
99. ‘विनय पत्रिका’ का प्रधान रस क्या है?
सही उत्तर: (ग) शांत रस और भक्ति रस
व्याख्या: ‘विनय पत्रिका’ में सांसारिक विषयों से विरक्ति और ईश्वर के प्रति अनुराग का भाव है, जो शांत रस का स्थायी भाव (निर्वेद) है। साथ ही, ईश्वर के प्रति विनय, समर्पण और प्रेम का भाव होने के कारण भक्ति रस भी इसका प्रधान रस है।
100. बिहारी की प्रसिद्धि का मुख्य कारण क्या है?
सही उत्तर: (ख) कल्पना की समाहार शक्ति और भाषा की समास शक्ति
व्याख्या: बिहारी की प्रसिद्धि का सबसे बड़ा कारण उनकी ‘गागर में सागर’ भरने की अद्भुत क्षमता है। वे अपनी कल्पना शक्ति से बड़े से बड़े प्रसंग को एक दोहे में समेट लेते थे (समाहार शक्ति) और कम से कम शब्दों में अधिक से अधिक बात कह देते थे (भाषा की समास शक्ति)।